सनातन गर्व कुम्भ महापर्व – आस्था और उत्सव का अद्वितीय संगम

*💐कुम्भ मेला सनातन संस्कृति की अमूल्य धरोहर*

*🌸आओं कुम्भ चलें और इस अद्भुत महापर्व का हिस्सा बनें*

*स्वामी चिदानन्द सरस्वती*

ऋषिकेश, 5 जनवरी। भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर में कुम्भ मेला का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह महापर्व केवल हिन्दू धर्म के अनुयायियों के लिए नहीं, बल्कि सम्पूर्ण मानवता के लिए एक अद्वितीय आध्यात्मिक उत्सव है। कुम्भ मेला वह पर्व है, जो विश्वभर में अपनी महानता और विशिष्टता के दर्शन कराता है। कुम्भ, आस्था और धार्मिकता के साथ मानवता, समृद्धि, और संस्कृति के सम्मान का भी प्रतीक है।

परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने सभी का आह्वान करते हुये कहा कि आओं कुम्भ चले। कुम्भ मेले एक अवसर है सभी श्रद्धालुओं और समाज के सभी वर्गों को एकजुट करने का। कुम्भ मेला हमारी आस्था, हमारे संस्कार, और हमारे पुण्य का प्रतीक है।

कुम्भ मेला सनातन धर्म का अद्वितीय पर्व है, जब-जब पुण्य और आस्था का संगम होता है, तब-तब कुम्भ मेला आयोजित होता है। यह पर्व हमें अपनी संस्कृति की महानता, हमारे धर्म के प्रति आस्था, और हमारे कर्मों के महत्व को दर्शाता है।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि कुम्भ मेला केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह एक जीवनदायिनी ऊर्जा का संगम है। यह हमें अपने जीवन के उच्चतम उद्देश्य को प्राप्त करने का मार्ग दिखाता है।

स्वामी जी ने कहा कि कुम्भ मेला केवल एक स्थान पर इकट्ठा होने का अवसर नहीं है, बल्कि यह हमें एकजुट होने और मानवता के सेवा में अपना योगदान देने का अवसर भी प्रदान करता है।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि कुम्भ मेले में कल्पवास करना हमें प्रकृति और पर्यावरण के साथ सामंजस्यपूर्ण जीवन जीने की दिशा में भी मार्गदर्शन प्रदान करता है। कुम्भ मेला में हमें यह समझने का अवसर मिलता है कि हम पृथ्वी के कर्तव्यधारी हैं और हमें अपनी गतिविधियों से पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहिए। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखें।

कुम्भ मेला हमें हमारी सांस्कृतिक धरोहर की याद दिलाता है। यह केवल आध्यात्मिक यात्रा नहीं, बल्कि एक सामाजिक समृद्धि और सांस्कृतिक जागरूकता का उत्सव भी है। कुम्भ मेला हमसे यह अपील करता है कि हम अपने जीवन को शुद्ध करें, अपने कर्मों को बेहतर बनाएं, और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझें।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने श्रद्धालुओं से आह्वान करते हुये कहा कि कुम्भ मेला का हिस्सा बनें और इस अद्भुत महापर्व में अपनी आस्था और धर्म के प्रति प्रतिबद्धता को प्रकट करें। आओं कुम्भ चलें और इस महापर्व का हिस्सा बनकर हम अपने जीवन को पुण्य और शांति से भरें। यह अवसर हमें न केवल अपने आंतरिक आत्मा से जुड़ने का, बल्कि समाज की सेवा और पर्यावरण संरक्षण के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाने का भी अवसर प्रदान करता है।

कुम्भ मेला हम सभी के लिए एक अद्वितीय अवसर है, जहां हम अपनी आस्था, संस्कृति, और परंपराओं को पुनः जगा सकते हैं। यह महापर्व हमें बताता है कि हम सभी एक हैं, और हमारे अस्तित्व का उद्देश्य केवल आत्मशुद्धि और मानवता की सेवा में है।

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