संस्कारों का अंतिम परिणाम है व्यक्तित्व का विकास: आचार्य शिव प्रसाद

बदरीनाथ: संयमी जीवन संस्कारों को सम्पन्न करता है और संस्कारों का फल होता है। शरीर और आत्मा का उत्तरोत्तर विकास धर्म संमार्ग का प्रथम उपदेश है। अभ्युदय के लिए नियम है। संयम उस आदेश का नियम पालन है। संस्कार उन संयमांे का सामूहिक फल है और किसी देशकाल और निमित में विशेष प्रकार की उन्नत अवस्था में प्रवेश करने का द्वार है। सब संस्कारों का अंतिम परिणाम व्यक्तित्व का विकास है। यह बात बदरीनाथ धाम में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के दौरान व्यास आचार्य शिव प्रसाद ममगाईं ने कही।
बदरीनाथ धाम के भारत सेवा आश्रम में स्वर्गीय कैप्टन निशान्त नेगी की पुण्य स्मृति में चल रही श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन किया जा रहा है। इस दौरान आचार्य शिव प्रसाद ममगांई ने कहा कि संयम संस्कार अभ्युदय निःश्रेयस यह धर्मानुकूल कर्तव्य का क्रियात्मक रूप है। ये सभी मिलकर संस्कृति का इतिहास बनाते हैं। धर्म यदि आत्मा और अनात्मा का जीवात्मा का और शरीर का विधायक है, तो संस्कार हर जीवात्मा और शरीर का विकास करने वाला है। धर्म व्यक्ति की तरह समाज का भी विधायक है। दोष पाप दुष्कृत अधर्म है, इन्हें दूर करने का साधन संस्कार है।
भारतीय धर्म के स्वरूप में धर्म और संस्कृति का अटूट सम्बन्ध है धर्म के अन्य वर्गीकरण भी उल्लिखित हैं नित्य नैमित्तिक काम्य आपद धर्म आदि नित्य यह धार्मिक कार्य जिसका पालन करना अनिवार्य है और जिसके न करने से पाप होता है नैमित्तिक धर्म को विशेष अवसरों पर स्वीकार करना अनिवार्य होता है काम्य धर्म वह है जो किसी विशेष उद्देश्य की सिद्धि के लिए किया जाता है परंतु जिसके न करने से पाप नही होता है आपद धर्म वह होता है जो संकट की स्थिति में सामान्य और विशिष्ट धर्म को छोड़कर करना पड़ता है शास्त्र के नियमानुकूल आपद धर्म का पालन करने से कोई दोष नही लगता है।
इस मौके पर पुष्कर नेगी, रेखा नेगी, शुभम, आस्था, माहिरा, मधुर मेहर, रविंद्र, पुष्पा सुंदरियाल, सुरेंद्र पटवाल, उर्मिला पटवाल, मेहरबान सिंह, देवेन्द्र नेगी, प्रभा, अजय राय, संजय बिष्ट, चन्द्र मोहन ममगाईं, वेदपाठी आचार्य रवीद्र भट्ट, धर्माधिकारी राधाकृष्ण थपलियाल, जिलाध्यक्ष भाजपा रघुवीर बिष्ट, सुभाष डिमरी, शिवप्रसाद डिमरी, सुदर्शन रावत, डा. हरीश गौड़ आदि मौजूद थे।