देश की आखिरी चाय की दुकान पर यूपीआई पेमेंट को लेकर आनंद महिद्र ने किया ट्वीट

चमोली: जिले के भारत-तिब्बत सीमा के माणा गांव की आखरी चाय की दुकान पर यूपीआई पेमंेंट सुविधा मिलने को लेकर आनंद महिंद्र ने अपने ट्वीटर हैंडल पर ट्वीट को रिट्वीट किया है। जिसके बाद से भारत की चाय की दुकान पर यूपीआई पेमेंट की सुविधा को डिजिटल इंडिया के प्रसार से जोड़कर बड़े पैमाने पर ट्वीटर यूजर वायरल कर रहे हैं।
जानकारी के अनुसार चार दिन पहले किसी ट्वीटर यूजर ने माणा गांव की आखरी चाय की दुकान में यूपीआई से भुगतान की सुविधा मिलने को लेकर वीडियो ट्वीट शेयर किया था। जो महिंद्रा ग्रुप के चेयरमैन आनंद महिंद्रा ने देखा तो उन्होंने इसे रिट्वीट करते हुए लिखा कि जैसा कि कहते हैं, एक तस्वीर 1000 शब्दों के बराबर होती है, यह तस्वीर भारत के डिजिटल भुगतान इकोसिस्टम के दायरे और पैमाने को दर्शाती है। जय हो। जिसके बाद से यह ट्वीट तेजी से वायरल होने लगा है।
कहाँ है माणा गांव—-
सीमांत जनपद चमोली का माणा गाँव देश की सरहद का अंतिम गाँव है। पर्यटन के लिहाज से हर साल इस गाँव में लाखों लोग आतें हैं। बद्रीनाथ धाम से महज 3 किमी की दूरी पर अलकनंदा नदी और सरस्वती नदी के संगम केशव प्रयाग के बायीं और बसा है ये खुबसूरत गाँव। ये गाँव भोटिया जनजाति बाहुल्य गाँव है। यहाँ के निवासी 6 महीने अपने ग्रीष्मकालीन प्रवास गोपेश्वर और घिंघराण में निवास करतें हैं और 6 महीने देश के अंतिम गाँव माणा में। माणा गाँव में 150 परिवार निवास करते हैं। यहां के ज्यादातर घर दो मंजिलों पर बने हुए हैं और इन्हें बनाने में लकड़ी का ज्यादा प्रयोग हुआ है। छत पत्थर के पटालों की बनी है। इन घरों की खूबी ये है कि इस तरह के मकान भूकम्प के झटकों को आसानी से झेल लेते हैं। इन मकानों में ऊपर की मंजिल में घर के लोग रहते हैं जबकि नीचे पशुओं को रखा जाता है। यह पूरा क्षेत्र सालभर ठंडा रहता है। यहाँ की मिट्टी आलू की खेती के लिए सबसे अच्छी मानी जाती है। जौ और ओगल, फाफर (इसका आटा बनता है) भी अन्य प्रमुख फसलों में हैं। इनके अलावा यहां भोजपत्र भी बड़ी संख्या में पाए जाते हैं, जिन पर हमारे महापुरुषों ने अपने ग्रंथों की रचना की थी।माणा गाँव का धार्मिक व ऐतिहासिक महत्व
माणा गाँव से लगे कई धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व के दर्शनीय स्थल हैं। गाँव से कुछ ऊपर चढ़ाई पर चढ़ें तो पहले नजर आती है गणेश गुफा और उसके बाद व्यास गुफा। व्यास गुफा के बारे में कहा जाता है कि यहीं पर वेदव्यास ने पुराणों की रचना की थी और वेदों को चार भागों में बाँटा था। व्यास गुफा और गणेश गुफा यहाँ होने से इस पौराणिक कथा को सिद्ध करते हैं कि महाभारत और पुराणों का लेखन करते समय व्यासजी ने बोला और गणेशजी ने लिखा था। व्यास गुफा, गणेश गुफा से बड़ी है। गुफा में प्रवेश करते ही किसी की भी नजर एक छोटी सी शिला पर पड़ती है। इस शिला पर प्राकृत भाषा में वेदों का अर्थ लिखा गया है। इसके पास ही है भीमपुल। पांडव इसी मार्ग से होते हुए अलकापुरी गए थे। प्राकृतिक सौन्दर्य के साथ-साथ भीम पुल से एक रोचक लोक मान्यता भी जुड़ी हुई है। जब पांडव इस मार्ग से गुजरे थे। तब वहाँ दो पहाड़ियों के बीच गहरी खाई थी, जिसे पार करना आसान नहीं था। तब कुंतीपुत्र भीम ने एक भारी-भरकम चट्टान उठाकर फेंकी और खाई को पाटकर पुल के रूप में परिवर्तित कर दिया। बगल में स्थानीय लोगों ने भीम का मंदिर भी बना रखा है। इसी रास्ते से आगे बढ़ें तो पाँच किमी. का पैदल सफर तय कर पर्यटक पहुँचते हैं वसुधारा। लगभग 400 फीट ऊँचाई से गिरता इस जल-प्रपात का पानी मोतियों की बौछार करता हुआ-सा प्रतीत होता है। ऐसा कहा जाता है कि इस पानी की बूँदें पापियों के तन पर नहीं पड़तीं। यह झरना इतना ऊँचा है कि पर्वत के मूल से पर्वत शिखर तक पूरा प्रपात एक नजर में नहीं देखा जा सकता। इस गाँव को मणिभद्रपुरी नाम से भी जाना जाता है। जबकि बद्रीनाथ के रक्षक के रूप में घंटाकर्ण का ऐतिहासिक मंदिर भी यहाँ पर स्थित है।