स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने देवभूमि, उत्तराखण्ड की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का लोकपर्व ‘इगास’ में किया सहभाग, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने किया सहभाग

-उत्तराखंड के सांसद श्री अनिल बलूनी जी ने अपने नई दिल्ली आवास पर आयोजित किया इगास का उत्सव
-उत्तराखंड की सभ्यता और संस्कृति का उत्कृष्ट लोकपर्व ईगास (बूढ़ी दिवाली) की हार्दिक शुभकामनाएं
-उत्तराखण्ड की गौरवशाली समृद्ध संस्कृति का दिव्य प्रतीक इगास
-परमार्थ निकेतन से सभी के सुख-समृद्धि एवं स्वस्थ-सुखद खुशहालीपूर्ण जीवन की कामना
ऋषिकेश। देवभूमि, उत्तराखण्ड की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का लोकपर्व ‘इगास’ का दिव्य, भव्य व अद्भुत आयोजन माननीय सांसद श्री अनिल बलूनी जी ने अपने नई दिल्ली आवास पर किया। इस दिव्य अवसर पर भारत के प्रधानमंत्री आदरणीय श्री नरेन्द्र मोदी जी, उपराष्ट्रपति महामहिम श्री जगदीप धनखड़ जी, परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष, स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी, योगगुरू स्वामी रामदेव जी, मÛ मÛ स्वामी अवधेशानन्द गिरि जी, बागेश्वर धाम सरकार आचार्य श्री धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी, माननीय रक्षामंत्री श्रीमान राजनाथ सिंह जी, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री श्रीमान जगत प्रकाश नड्डा जी, उत्तराखण्ड के कैबिनेट मंत्री माननीय श्री धनसिंह रावत जी, सांसद त्रिवेन्द्र सिंह रावत जी और अनेक विभूतियों की गरिमामय उपस्थिति में पूज्य सन्तों एवं गणमान्य विभूतियों ने इगास पर्व के अवसर पर पूजन अर्चन कर उत्तराखण्ड की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर को संजों कर रखने का संदेश दिया।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार प्रभु श्रीराम के वनवास से अयोध्या लौटने की सूचना गढ़वाल, कुमाऊँ क्षेत्र के लोगों को दीपावली के ग्यारह दिन बाद कार्तिक शुक्ल एकादशी को मिली इसलिये इस पर्व को बूढ़ी दीपावली भी कहा जाता है।
एक और मान्यता के अनुसार, गढ़वाल के वीर भड़ माधो सिंह भंडारी, टिहरी के राजा महिपति शाह की सेना के सेनापति थे। लगभग 400 साल पहले, राजा ने माधो सिंह को सेना के साथ तिब्बत से लड़ने के लिए भेजा था।

इस दौरान, बग्वाल (दीवाली) का पर्व भी था, लेकिन इस पर्व तक कोई भी सैनिक वापस नहीं आ सका। सभी ने सोचा कि माधो सिंह और उनके सैनिक युद्ध में शहीद हो गए, इसलिए किसी ने दीवाली (बग्वाल) नहीं मनाई लेकिन दीवाली के 11वें दिन, माधो सिंह भंडारी तिब्बत से अपने सैनिकों के साथ दवापाघाट की लड़ाई जीतकर लौटे। इस खुशी में दीवाली मनाई गई।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि देवभूमि, उत्तराखंड, की अपनी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर और प्राकृतिक सुंदरता है, ईश्वर ने इस राज्य को स्वयं अपने हाथों से गढ़ा है। यहां हिमालय भी है और गंगा भी है, यह हमारा स्विजरलैंड भी है और स्पिरिचुअल लैंड भी है।
इस पर्वतीय राज्य की संस्कृति और परंपराओं में प्रकृति और आध्यात्मिकता का अद्भुत समन्वय हैं। यहां के लोगों ने अपने संस्कृति व संस्कार, पर्व व परम्परा, परिधान और पकवान सबको धरोहर के रूप में सहेज कर रखा है इगास पर्व इसका उत्कृष्ट उदाहरण है।
स्वामी जी ने कहा कि इगास में उत्तराखंड की विविधता और समृद्धि समाहित है। उत्तराखंड की संस्कृति, प्रकृति को समर्पित है। यहाँ के लोग प्राकृतिक संसाधनों और पर्यावरण का आदर व सम्मान करते हैं और प्रकृति को अपनी संस्कृति का अभिन्न अंग मानते हैं।
उत्तराखंड के सांसद श्री अनिल बलूनी जी ने अपने नई दिल्ली आवास पर इगास का उत्सव आयोजित कर उत्तराखंड के पारंपरिक परिधानों, पकवान, पर्व और लोकनृत्य झुमैला और चैंफला आदि सांस्कृतिक धरोहर का सम्मान व राष्ट्रीय पहचान प्रदान की है। वास्तव में यह उत्तराखंड की संस्कृति अद्वितीय है सब प्रदेशवासी मिलकर अपने इन दिव्य पर्वों व परम्पराओं को जीवंत व जागृत बनाये रखें तथा प्रकृति और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करते रहें ताकि भावी पीढ़ियां भी संतुलित और समृद्ध जीवन जी सकें।

zerogroundnews

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!