मैठाणा गांव में 13 वर्षों बाद रामलीला का मंचन हुआ शुरु, संस्कृत के संवाद लीला के हैं आकर्षण

गोपेश्वर : गढवाल में रामलीला का मंचन सामान्य तौर पर सभी गांवों में किया जाता है। लेकिन चमोली जिले के मैठाणा गांव में आयोजित होने वाली रामलीला में संस्कृत में संवाद के चलते लीला ने गढवाल और चमोली में अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। ऐसे में 13 वर्षों के बाद एक बार फिर शुक्रवार से मैठाणा में रामलीला का मंचन शुरु होने पर स्थानीय ग्रामीणों के साथ ही अन्य लोगों में भी लीला को लेकर कौतूहल बना हुआ है।
चमोली के मैठाणा गांव में शुक्रवार को विधिवत रामलीला शुभारंभ हो गया है। यहां पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने जहां वर्चुवल माध्यम से रामलीला का शुभारंभ किया। वहीं रामलीला आयोजन में शामिल हो कर थराली विधायक मुन्नी देवी ने दीप प्रज्जवलित कर लीला का आगाज किया। लीला के प्रथम दिन यहां लीला मंचन में लंकापति रावण अपने भाई कुम्भकरण और विभीषण के साथ ब्रह्म देव की तपस्या करता है। जिस पर ब्रहम देव प्रकट होकर रावण को अमरता, कुम्भकरण को छह माह की निंद्रा और विभिषण का नारायण भक्ति का वरदान देते हैं। वरदान पाकर रावण की ओर ऋषि-मुनियों पर अत्याचार शुरु कर दिया जाता है। वहीं देवऋषि नारद के कहने पर लंकापति रावत कैलाश के लंका लाने पहुंचता है। यहां जब वह कैलाश को उठाने का प्रयास करता है। तो क्रोधित भगवान शिव रावत को मानव, कपि और रीछ के हाथों से लंगा और उसके विनाश का श्राप देते हैं। रामलीला कमेटी अध्यक्ष विनोद मिश्रा ने कहा कि 13 वर्षों बाद रामलीला के पुनः आयोजन को लेकर ग्रामीणों, कलाप्रेमियों में खासा उत्साह है। जिससे कमेटी के पदाधिकारी व सदस्यों का आयोजन को लेकर उत्साह दोगुना हो गया है। इस मौके पर कमेटी के उपाध्यक्ष श्रीबल्लभ मैठाणी, सुरेंद्र प्रसाद खंडूड़ी, मदन मोहन कोठियाल, विमल प्रसाद मैठाणी, गणेश मनूडी, महेन्द्र सिंह चौहान, भगवती प्रसाद पुरोहित, बॉबी, मनीष कोठियाल और तारेंद्र कोठियाल आदि मौजूद थे।

मैठाणा की रामलीला क्या है विशेष—-
मैठाणा गांव में भी राज्य के अन्य क्षेत्रों की भांति सौ वर्षों से अधिक समय से रामलीला आयोजन की परम्परा रही है। लेकिन पूर्व में मैठाणा की रामलीला के संवाद संस्कृत में होने के चलते यह पूरे चमोली जिले में विशिष्ट स्थान रखती थी। हालांकि परिवेश के बदलने के साथ ही अब यहां कुछ अंश सामान्य रामलीला की भांति आयोजित किये जाते हैं। लेकिन वर्तमान में भी यहां लक्ष्मण-परशुराम संवाद, रावण-अंगद संवाद की लीलाओं का आयोजन संस्कृत में ही किया जाता है।

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