हिन्दुओं के इस गांव में नहीं होती आज भी राम भक्त हनुमान की पूजा

  • तेत्रायुग से संकट मोचन हनुमान से नाराज हैं इस गांव के ग्रामीण
  • गांव की सीमा ने नहीं लगते लाल झंडे और रामलीला में भी हनुमान जी की लीला का नहीं होता मंचन

चमोली : जहां देश और दुनिया में राम भक्त और संकटमोचन हनुमान की करोड़ों भक्त हैं। वहीं ऐसे में उत्तरांखड के चमोली जिले भारत-तिब्बत सीमा क्षेत्र में स्थित सीमांत गांव द्रोणागिरी में आज भी ग्रामीण राम भक्त हनुमान की पूजा नहीं करते हैं। यहां हनुमान जी से ग्र्रामीणों की नाराजगी का आलम यह है कि न ही इस गांव में लाल झंडे लगाये जाते हैं और न ही रामलीला में राम-रावण युद्ध में हनुमान जी की लीला का मंचन किया जाता है।
द्रोणागिरि गांव चमोली जिले की भारत-तिब्बत सीमा क्षेत्र में स्थिति नीति घाटी में 14 हजार फिट की ऊंचाई पर स्थित है। गांव में भोटिया जनजाति के ग्रामीण ग्रीष्मकाल में निवास करते हैं। ग्रामीण जहां हिन्दू मतावलम्बी हैं। वहीं गांव में हनुमान की पूजा नहीं की जाती है। मान्यता के अनुसार त्रेतायुग में राम-रावण युद्ध के दौरान लक्ष्मण के जीवन की रक्षा के लिये हनुमान जी द्रोणागिरी गांव से संजीवनी के साथ पहाड़ ही उठा कर ले गये थे। जिसके चलते गांव में हनुमान जी नाराजगी की इस परम्परा का ग्रामीणों द्वारा निर्वहन किया जा रहा है। गांव में इसी परम्परा के चलते जहां लाल रंग के झंडे नहीं लगाये जाते, वहीं गांव में आयोजित होने वाली रामलीलाओं में भी लीला में हनुमान जी की लीलाओं का मंचन नहीं किया जाता है। स्थानीय निवासी उदय सिंह और धर्मेंद्र पाल का कहना है कि पूर्वजों द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर गांव में हनुमान जी की पूजा-अर्चना नहीं की जाती है। हालांकि अन्य स्थानों पर ग्रामीणों द्वारा हनुमान जी की पूजा पर किसी प्रकार की पाबंदी नहीं है।

कैसे पहुंचे द्रोणागिरी गांव—–
नीति घाटी में स्थिति द्रोणागिरी गांव पहुंचने के लिये बदरीनाथ हाईवे पर ऋषिकेश से 250 किमी की दूरी सड़क से पार कर जोशीमठ पहुंचा जाता है। जहां से जोशीमठ-नीति राजमार्ग पर 45 किमी की दूरी वाहन से और 3 किमी की पैदल दूरी तय कर रिंगी गांव पहुंचा जा सकता है। जहां से करीब 7 किमी की पैदल दूरी पार कर द्रोणागिरी गांव पहुंचा जाता है।

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