परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी राष्ट्रीय नदी मंथन-2024 समारोह में विशेष रूप से आमंत्रित, देशभर के विभिन्न प्रतिष्ठित विभूतियों ने किया सहभाग

-वाटर विजन 2047 में भारतीय नदी परिषद् की भूमिका
-माननीय 14 वें राष्ट्रपति, भारत, श्री रामनाथ कोविंद जी, परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी, माननीय उप राज्यपाल, दिल्ली, श्री विनय कुमार सक्सेना जी, निरंजन पीठाधीश्वर स्वामी कैलाशानन्द जी, निदेशक गोवर्धन ईको विलेज, श्री गौरंगदास जी, कुलाधिपति, शोभित विश्वविद्यालय श्री कुंवर शेखर विजेंद्र जी, सलाहकार, भारतीय नदी परिषद् श्री मनु गौड़ जी, फिल्म अभिनेता श्री विजय राज जी, गायक श्री शंकर साहनी जी, मोटिवेशनल स्पीकर डा जय मदान जी और अन्य विशिष्ट अतिथियों ने किया सहभाग

ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी को राष्ट्रीय नदी मंथन-2024 समारोह में विशेष रूप से आमंत्रित किया गया। राष्ट्रीय नदी मंथन-2024 समारोह भारतीय नदियों के संरक्षण और पुनर्जीवन के लिए आयोजित एक महत्वपूर्ण समारोह है। इस समारोह में देशभर के विभिन्न प्रतिष्ठित विभूतियों ने सहभाग किया। समारोह का उद्देश्य नदियों की स्वच्छता, संरक्षण और पुनर्जीवन के लिए विचार-विमर्श और कार्ययोजना बनाना है।

इस समारोह का मुख्य आकर्षण ‘वाटर विजन 2047’ है, जिसमें भारतीय नदी परिषद् की भूमिका पर विशेष चर्चा की गई। इस विजन का उद्देश्य अगले 25 वर्षों में भारतीय नदियों के संरक्षण और पुनर्जीवन के लिए ठोस कार्ययोजना तैयार करना है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि भारत की नदियाँ हमारे देश की जीवनरेखा हैं। इनका संरक्षण और पुनर्जीवन हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है। हमें मिलकर काम करना होगा ताकि हमारी नदियाँ स्वच्छ और स्वस्थ रहें।
स्वामी जी ने बताया कि हमने नदियों के संरक्षण और जागरूकता के लिये वर्ष 1997 से विधिवत रूप से गंगा जी की आरती का क्रम एक अनुष्ठान की तरह शुरू किया ताकि नदियों के प्रति जनसमुदाय अपनी श्रद्धा, आस्था समर्पित करने के साथ कृतज्ञता भी व्यक्त करें। आरती का विधिवत क्रम वर्ष 1998 में बागमती नदी, नेपाल, 1999 में वाराणसी में आरती का विशाल क्रम शुरू किया, वर्ष 2000 में गंगोत्री, 2001 में प्रयागराज, 2002 में रूद्रप्रयाग, देवप्रयाग, उत्तरकाशी, सरयु तट अयोध्या, क्षिप्रा नदी, उज्जैन, यमुना आरती, दिल्ली, आगरा, वृदांवन, कोलकाता और अन्य अनेक शहरों में आरती का दिव्य व भव्य क्रम शुरू किया।
स्वामी जी ने कहा कि भारत एक मात्र ऐसा राष्ट्र है जहां पर शाम होते ही पवित्र नदियों के तटों पर घंटी, वेदमंत्र और शंख ध्वनि गूंजने लगती है क्योंकि नदियां भारतीयों की आस्था, श्रद्धा, पवित्रता, संस्कृति व संस्कारों की प्रतीक है। हमारी आध्यात्मिक, आर्थिक व सामाजिक परम्पराओं का केन्द्र है। वर्तमान समय में तेजी से बढ़ती जनसंख्या, औद्योगीकरण और शहरीकरण के कारण नदियों की स्थिति में बहुत बदलाव हुआ है। कई सदानीरा नदियां प्रदूषित होकर विलुप्त हो रही हैं इसलिये सामाजिक जागरूकता सबसे बड़ी जरूरत है।
माननीय 14वें राष्ट्रपति, श्री रामनाथ कोविंद जी ने कहा कि हमारी नदियाँ हमारे समृद्ध सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहर का अंग हैं। इनका संरक्षण हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए क्योंकि नदियाँ न केवल हमारे जीवन व जीविका का आधार हैं, बल्कि वे हमारी संस्कृति और परंपराओं का भी महत्वपूर्ण अंग हैं।
माननीय उप राज्यपाल, दिल्ली, श्री विनय कुमार सक्सेना जी ने कहा कि हम सभी को मिलकर नदियों के पुनर्जीवन के लिए ठोस कदम उठाने होंगे क्योंकि नदियों का पुनर्जीवन हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है और इसके लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है। दिल्ली की नदियों का संरक्षण और पुनर्जीवन न केवल पर्यावरणीय दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमारी सांस्कृतिक और सामाजिक धरोहर को भी संरक्षित करने का एक महत्वपूर्ण प्रयास है।
इस अवसर पर नदी विशेषज्ञों ने नदियों की स्वच्छता के लिए विभिन्न अभियान की शुरूआत करने, नदियों के किनारे पर तटबंधों का निर्माण करने ताकि बाढ़ के प्रभाव को कम किया जा सके और नदियों का संरक्षण सुनिश्चित किया जा सके। जल संरक्षण के लिए विभिन्न उपाय, जैसे वर्षा जल संचयन, जल पुनर्चक्रण और जलस्रोतों का संरक्षण आदि पर चर्चा की। साथ सरकार के साथ समाज व समुदायों की भूमिका पर प्रकाश डालते हुये कहा कि शैक्षणिक कार्यक्रमों के माध्यम से युवाओं को नदियों के महत्व और उनके संरक्षण के तरीकों के बारे में जागरूक करने पर कार्ययोजना बनायी तथा नदियों के संरक्षण के लिए दीर्घकालिक और सतत प्रयासों पर विशेष चर्चा की।
वाटर विजन 2047 का उद्देश्य न केवल नदियों के संरक्षण और पुनर्जीवन के प्रयासों को बढ़ावा देना है, बल्कि यह सुनिश्चित करना भी है कि आने वाली पीढ़ियों के लिए नदियों का स्वस्थ और स्वच्छ प्रवाह बना रहे।

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