*विश्व शौचालय दिवस पर परमार्थ निकेतन की स्वच्छता के लिये अद्भुत पहल*
*जब हम शुद्ध और पवित्र होते हैं, तो हमारी सोच और हमारे कर्म भी पवित्र होते हैं*
*जब हमारा परिवेश स्वच्छ होता है, तो हम बीमारियों से बचे रहते हैं और स्वस्थ जीवन जीते हैं*
*स्वच्छता एक बुनियादी मानव अधिकार*
*स्वामी चिदानन्द सरस्वती*
ऋषिकेश, 19 नवम्बर। विश्व शौचालय दिवस के अवसर पर, परमार्थ निकेतन, के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि स्वच्छता केवल शारीरिक स्वास्थ्य के लिए ही नहीं, बल्कि सामाजिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने आज विश्व शौचालय दिवस के अवसर पर माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी को उनके उत्कृष्ट कार्यों के लिए साधुवाद दिया। स्वामी जी ने प्रधानमंत्री के स्वच्छ भारत अभियान और स्वच्छता के प्रति उनकी प्रतिबद्धता की सराहना करते हुये कहा कि माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी के नेतृत्व में स्वच्छता के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति हुई है और यह अभियान देश के हर कोने में स्वच्छता का संदेश पहुंचाने में सफल रहा है। स्वामी जी ने सभी से अपील की कि वे इस अभियान में सक्रिय रूप से भाग लें और स्वच्छता को अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा बनाएं।
परमार्थ निकेतन में विश्व शौचालय कॉलेज, जीवा, 2015 में वर्ल्ड टॉयलेट ऑर्गनाइजेशन और रेकिट बेंकाइजर की साझेदारी में शुरू किया गया था। यह कॉलेज भारत की स्वच्छता आवश्यकताओं और महिलाओं के मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता के लिए आवश्यक ज्ञान और कौशल प्रदान करता है। यह दुनिया का पहला ऐसा कॉलेज है जिसे आध्यात्मिक संस्थान में स्थापित किया गया। परमार्थ निकेतन और रेकिट बेंकाइजर की साझेदारी उत्तराखंड के विभिन्न स्थानों पर शौचालय और शौचालय यूनिट का निर्माण कराया गया था। विभिन्न विद्यालयों और बस स्टैंड आदि पर शौचालय यूनिटों का निर्माण कराया गया और यह यात्रा निरंतर जारी है।
विश्व शौचालय कॉलेज का मुख्य उद्देश्य नवीनतम तकनीकों और उपकरणों का उपयोग कर एक स्वस्थ और स्वच्छ भारत के लिए लोगों को प्रेरित और शिक्षित करना है। अपने स्थापना के बाद से, उत्तराखंड, बिहार और अन्य राज्यों में 5000 से अधिक लोगों को औपचारिक प्रशिक्षण दिया गया है। 2021-2022 के दौरान, कोविड प्रतिबंधों के बावजूद, लगभग 1000 सफाईकर्मियों को स्वच्छता और सफाई के बारे में विशेष प्रशिक्षण दिया गया।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि “स्वच्छता एक बुनियादी मानव अधिकार है और हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हर व्यक्ति को स्वच्छ और सुरक्षित शौचालय की सुविधा मिले। इसके बिना स्वस्थ समाज का निर्माण संभव नहीं है।” उन्होंने आगे बताया कि शौचालयों की कमी न केवल बीमारियों को बढ़ावा देती है, बल्कि यह महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए भी खतरा है।
परमार्थ निकेतन द्वारा चलाए जा रहे वाश (वॉटर, सेनिटेशन एंड हाइजीन) पहल के अंतर्गत शौचालय निर्माण, महिलाओं का सशक्तिकरण और उनके स्वास्थ्य की सुरक्षा जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर काम किया जा रहा है। इस पहल का मुख्य उद्देश्य समाज के सभी वर्गों में स्वच्छता के प्रति जागरूकता फैलाना और उन्हें स्वस्थ जीवन जीने के लिए प्रेरित करना है।
स्वच्छता न केवल हमारे बाहरी पर्यावरण के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह हमारे आंतरिक जीवन के लिए भी उतनी ही आवश्यक है। स्वच्छता के माध्यम से हम अपने शरीर, मन और आत्मा को शुद्ध कर सकते हैं। स्वच्छता का सीधा संबंध हमारे स्वास्थ्य से है। जब हमारा परिवेश स्वच्छ होता है, तो हम बीमारियों से बचे रहते हैं और स्वस्थ जीवन जीते हैं। शौचालयों की स्वच्छता विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह न केवल हमारी शारीरिक स्वच्छता को सुनिश्चित करता है, बल्कि हमारे पर्यावरण को भी स्वच्छ रखता है।
उन्होंने आगे कहा कि स्वच्छता केवल एक व्यक्तिगत जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि यह समाज की सामूहिक जिम्मेदारी भी है। हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारा परिवेश, हमारे सार्वजनिक स्थान और विशेष रूप से हमारे शौचालय स्वच्छ रहें। इससे न केवल हमारा शारीरिक स्वास्थ्य बेहतर होगा, बल्कि हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
स्वामी जी ने शुचिता पर भी जोर देते हुये कहा, शुचिता का अर्थ है पवित्रता। यह न केवल हमारे बाहरी परिवेश के लिए आवश्यक है, बल्कि हमारे आंतरिक जीवन के लिए भी महत्वपूर्ण है। जब हम शुद्ध और पवित्र होते हैं, तो हमारी सोच और हमारे कर्म भी पवित्र होते हैं। शुचिता हमें नैतिक और आध्यात्मिक ऊंचाईयों तक ले जाती है।
उन्होंने बताया कि शुचिता का पालन करके हम समाज में सद्भाव और शांति की स्थापना कर सकते हैं। शुचिता के माध्यम से हम अपनी आंतरिक शुद्धता को प्राप्त कर सकते हैं और समाज को एक बेहतर स्थान बना सकते हैं।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने आंतरिक शुद्धता पर विशेष जोर देते हुये कहा, आंतरिक शुद्धता का अर्थ है हमारे मन और आत्मा की शुद्धता। यह हमारे विचारों, भावनाओं और कार्यों की पवित्रता है। जब हमारे विचार शुद्ध होते हैं, तो हमारे कार्य भी पवित्र होते हैं। इससे हम न केवल अपने जीवन में खुशहाली ला सकते हैं, बल्कि समाज में भी सकारात्मक परिवर्तन ला सकते हैं।
उन्होंने आंतरिक शुद्धता प्राप्त करने के लिए ध्यान, साधना और आत्मनिरीक्षण का अभ्यास करने हेतु पे्रेरित करते हुये कहा कि यह हमें मानसिक शांति और स्थिरता प्रदान करता है और हमें आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाता है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने सामुदायिक भागीदारी का आह्वान करते हुए कहा, स्वच्छता, शुचिता और आंतरिक शुद्धता की इस यात्रा में हमें एक साथ आना होगा। समाज के हर व्यक्ति को इस प्रयास में भाग लेना चाहिए और इसे एक सामूहिक आंदोलन बनाना होगा।