महाकुम्भ के दिव्य अवसर पर परमार्थ निकेतन शिविर, परमार्थ त्रिवेणी पुष्प प्रयागराज में दिव्य हनुमंत कथा का आयोजन

-आचार्य धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी, बागेश्वर धाम सरकार के श्रीमुख से श्रद्धालुओं को हनुमंत कथा को अमृतपान करने का दिव्य अवसर प्राप्त हो रहा
-पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी का दिव्य आशीर्वाद और पूज्य साध्वी भगवती सरस्वती जी का पावन सान्निध्य
-स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने प्रथम दिवस की श्री हनुमत कथा के समापन अवसर पर किया सहभाग
-रामायण में श्रीराम अरूण गोविल जी का हनुमत कथा में आगमन

प्रयागराज। महाकुम्भ भारतीय आध्यात्मिकता और संस्कृति का उच्च और पवित्र पर्व है, पूज्य संतों का आगमन और सान्निध्य इस आयोजन को और भी विशिष्ट बनाता है। इस महाकुंभ के पावन अवसर पर परमार्थ निकेतन शिविर, परमार्थ त्रिवेणी पुष्प प्रयागराज में दिव्य हनुमंत कथा का आयोजन किया गया। इस अद्वितीय अवसर पर श्रद्धालुओं को आचार्य श्री धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी (बागेश्वर धाम सरकार) के श्रीमुख से हनुमंत कथा का अमृतपान करने का दिव्य अवसर प्राप्त हो रहा है।

हनुमंत कथा के माध्यम से आचार्य श्री धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी भक्तों को जीवन के उच्चतम उद्देश्यों की ओर बढ़ने का मार्गदर्शन प्रदान कर रहे हंै। उनके वचनों में वह दिव्य शक्ति और आस्था है, जो श्रोताओं के हृदय को स्पर्श करती है। वे हनुमान जी के जीवन, उनके पराक्रम, भक्ति और श्रद्धा का दिव्यता से अनुभव करा रहे हैं। हनुमान जी का जीवन केवल एक आदर्श नहीं, बल्कि यह एक संजीवनी है, जो हमें हर संकट से उबरने का संदेश देता है।
आचार्य जी के श्रीमुख से निकलने वाली अमृतवाणी से भक्तों के जीवन में नई चेतना का संचार हो रहा है। हनुमंत कथा एक दिव्य उपहार है, जो जीवन के संघर्षों, चुनौतियों और परेशानियों से निपटने के लिए अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करती है। हनुमान जी की कथा केवल एक ऐतिहासिक या पौराणिक कथा नहीं है, बल्कि यह एक आध्यात्मिक यथार्थ है, जो हमें अपने जीवन को नई दिशा देने का अवसर प्रदान करती है। हनुमान जी की भक्ति, उनकी शक्ति और उनका समर्पण हमें यह सिखाता हैं कि हम किसी भी संकट से जूझते हुए अगर सच्चे हृदय से भक्ति करें, तो हम हर मुश्किलों से पार पा सकते हैं।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि महाबली हनुमान जी अपने लिये नहीं जिये, अपने लिये, कुछ भी तो नहीं किया उन्होंने सब कुछ प्रभु के लिये तथा जो भी है वह सब भी प्रभु का इस भाव से जो किया वह भी सब प्रभु को ही समर्पित कर दिया। तेरा तुझको सौंपते क्या लागत है मोर। समाज को जरूरत है ऐसे ही विचारों की, जहां ’राम काज कीन्हें बिना, मोहि कहाँ विश्राम।’ जब तक राम काज; सेवा कार्य पूर्ण न हो विश्राम कहाँ, सुख कहाँ, चैन कहाँ।

श्री हनुमन जी सभी के ऊपर ऐसी कृपा करें की जीवन में न अहम रहे, न वहम रहे, बस ’सेवा, समर्पण एवं त्याग से युक्त यह जीवन प्रभु को अर्पित हो और हम सब भी सादगी, सरलता और हनुमान जी जैसी उदारता के साथ समाज और समष्टि की सेवा में अपने को समर्पित करें यही तो है जीवन का सार और यही महाकुम्भ में हो रही हनुमत कथा का संदेेश भी है। सेवा व समर्पण के माध्यम से ही हनुमान जी का सभी के हृदय में अवतरण हो।

आचार्य धीरेन्द्र कृष्ण जी ने कहा कि जीवन का वास्तविक बल केवल प्रभु श्रीराम है। जीवन में चार बल होते है तप का बल, शक्ति का बल, धन का बल परन्तु प्रभु भक्तों के पास तो प्रभु के श्रीनाम का परम बल होता है। पूज्य स्वामी जी की दिव्य कृपा से हमें संगम में तट पर तीन दिनों तक श्री हनुमत कथा में डुबकी लगाने का अवसर प्राप्त हो रहा है। कथा हमें संसार के संगम से पार जाने की युक्ति प्रदान करती है। संगम में स्नान करने से तन की शुद्धि व पापों से मुक्ति होती है और कथा रूपी संगम में डुबकी लगाने से मन की शुद्धि होती है।
डा साध्वी भगवती सरस्वती जी ने कहा कि आज हम सभी को यह दिव्य अवसर प्राप्त हुआ है। हमें भक्ति की शक्ति में डुबकी लगाने का अवसर प्राप्त हो रहा है। साध्वी जी ने कहा कि अमेरिका ने मुझे जीवन दिया परन्तु भारत ने मुझे जान दी। गुरू कृपा से मैं भारत में रहती हूँ परन्तु अब मुझे ऐसा लगता है कि अब भारत मुझ में रहता है। हनुमान जी मेरी प्रेरणा है; वे मेरे ईष्ट देवता है। हमें अपने जीवन में बड़ा नहीं बल्कि बढ़िया बनना चाहिये। भारत की सनातन संस्कृति और गुरू परम्परा ही सबसे बढ़िया है। उन्होंने कहा कि आचार्य धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी सनातन संस्कृति को पूरे विश्व के प्रचारित व प्रसारित करने में महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं।

श्री अरूण गोविल जी ने कहा कि महाकुम्भ पवित्रता का महोत्सव है। महाकुम्भ जैसी पवित्रता कही भी नहीं देखी। महाकुम्भ एकता, दिव्यता और समरसता का महोत्सव है। पूज्य स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी और पूज्य बागेश्वर जी के पावन सान्निध्य में हनुमत कथा में आकर ऐसा लग रहा है जैसे यही धरती पर स्वर्ग है।
साध्वी भगवती सरस्वती जी और आचार्य धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री जी ने दीप प्रज्वलित कर दिव्य हनुमत कथा का शुभारम्भ किया।

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