गोपेश्वर : महाकवि कालिदास की जयंती पर रविवार को उत्तराखंड सांस्कृतिक अकादमी की ओर से चमोली जिले में ऑन लाइन विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया है। गोष्ठी का शुभारंभ डा. जनार्दन कैरवान ने किया।
गोष्ठी में डॉ. मृगांक मलासी ने कहा कि संस्कृत बोलने में प्रारम्भ में अशुद्धियों पर ध्यान न देते हुए निरंतर अभ्यास करना आवश्यक है। संस्कृत बोलने का अभ्यास होने पर धीरे-धीरे शब्दों का चयन व उच्चारण अन्य भाषाओं की भांति शुद्ध हो जाता है। कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ विश्वबंधु ने बताया कि कालिदास की कृतियां हमारे देश की श्रेष्ठता का परिचय देतीं हैं। कालिदास संस्कृत साहित्य में ही नहीं अपितु अन्य भाषा साहित्यों में भी सम्मानित हैं। मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. जनार्दन कैरवान ने संस्कृत साहित्य के मूर्धन्य कवि महाकवि कालिदास के मानवीय जीवन के वर्णन को उजागर किया। उन्होंने कहा कि उस समय का मानव जीवन विषम परिस्थितियों में भी सम एवं उदार था। विशिष्ट अतिथि डॉ. जितेंद्र ने कालिदास के कविव्यक्तित्व पर प्रकाश ड़ालते हुए कहा कि ओजस्वी कवि जीवन की सभी परिस्थितियों का वर्णन करने में समर्थ थे। वे प्रकृति से जुड़े थे एवं उनके पात्रों में भी प्रकृति प्रेम उभरता है। आगे विशिष्ट अतिथि डॉ. चंद्रावती टम्टा जी ने वन्य मानवीय जीवन पर प्रकाश डाला कि वन्य मानवीय जीवन नगरीय मानवजीवन से पृथक नहीं था। उनमें त्याग, दया, आतिथ्य सत्कार आदि सभी भावनायें विद्यमान थी। कार्यक्रम के मुख्यवक्ता डॉ जोरावर सिंह जी ने कालिदास की कवि प्रतिभा का वर्णन करते हुए कहा कि वे प्रकृति की बेजान वस्तु में भी जान डालने में समर्थ थे। मेघदूत में मेघ द्वारा यक्ष अपनी विरह व्यथा को यक्षिणी तक प्रेषित करवाते हैं। डॉ. संदीप कुमार ने कालिदास के उपमा वर्णन की विशेषताओं प्रकाश डाला। उन्होंने कालिदास की उपमा अंग्रेजी साहित्य के प्रमुख नाटककार शेक्सपियर से की कालिदास के नाटक मानवजीवन की विशेषताओं को उजागर करते हैं। कार्यक्रम का में डॉ. मृगांक मलासी, हरीश बहुगुणा, डॉ. हरीश चन्द्र गुरुरानी, डॉ. रमेश चन्द्र भट्ट, डॉ. चन्द्रावती टम्टा, डॉ. नीरज पाँगती, डॉ. हरीश बहुगुणा, डॉ. प्रवीण शमा आदि ने अपने विचार रखे।