हरिद्वार। “कोदा- झंगोरा खाएंगे, उत्तराखंड बनाएंगे” इस नारे के साथ सोमवार को राजकीय मॉडल महाविद्यालय मीठी बेरी में “गढ़ भोज दिवस” मनाया गया। “गढ़ भोज दिवस” के अवसर पर महाविद्यालय में “निबंध प्रतियोगिता” का आयोजन किया गया था। महाविद्यालय की प्राचार्य प्रोफेसर अर्चना गौतम ने कार्यक्रम का शुभारंभ करते हुए कहा कि उत्तराखंड का पारंपरिक भोजन यहां की जलवायु के चलते स्वादिष्ट, पौष्टिक और औषधिय गुणों से भरपूर है ।इस कार्यक्रम का उद्देश्य पहाड़ी भोजन और पहाड़ी फसलों को पहचान दिलाने के साथ ही उसकी पौष्टिकता से लोगों को रूबरू कराना है ताकि यह पहाड़ के लोगों के आर्थिक उन्नति का माध्यम बन सके, इसलिए अक्टूबर महीने में ही यह कार्यक्रम रखा गया, क्योंकि इसी महीने उत्तराखंड की फसलें तैयार होकर खेत से घर पहुंच रही हैं। यह गढ़ भोज दिवस कार्यक्रम राज्य की संस्कृति को जिंदा रखने का माध्यम है। गढ़ भोज दिवस के इतिहास पर चर्चा करते हुए प्राचार्य मैडम ने कहा सामाजिक कार्यकर्ता और हिमालय पर्यावरण जड़ी बूटी एग्रो संस्थान जाड़ी के सचिव “गढ़ भोज” अभियान के जन्मदाता द्वारिका प्रसाद सेमवाल ने उत्तराखंड के पारंपरिक पहाड़ी व्यंजनों से बनी एक विशिष्ट उत्तराखंडी थाली को लोकप्रिय बनाने का अभियान शुरू किया था। इसका उद्देश्य स्थानीय फसलों विशेष कर बाजरे जैसे मोटे अनाज की खेती को बढ़ावा देना था। कार्यक्रम का संचालन करते हुए डॉ. सुनीता बिष्ट ने बताया कि उत्तराखंड की सभी सांस्कृतिक मेलों में अब गढ़ भोज के स्टॉल में मडुवे का हलवा, झंगोरे की खीर, गहत का फनू, गहत की रोटी जैसे पारंपरिक व्यंजन देखे जा सकते हैं। छात्र-छात्राओं ने गोष्ठी में अपने विचार रखते हुए कहा अब आंगनबाड़ी केंद्रों में दिए जाने वाले टेक-होम राशन की सूची में संशोधन कर मडुवा और झंगोरा के स्थान ही गहत और काले भट्ट जैसे स्थानीय दलों को अनिवार्य कर दिया गया है। कार्यक्रम में प्रोफेसर सत्येंद्र कुमार, डॉ. आशुतोष मिश्रा, डॉ. सुनील कुमार, डॉ. अरविंद वर्मा, डॉ. कुलदीप चौधरी, डॉ. देशराज, डॉ. सुमन पांडे, शशिधर उनियाल, श्रीमती पूनम, कुलदीप, सूरज, छात्र-छात्राओं में गुलफाम, नवनीत, पूजा, सोनाली, चंचल, कविता, निशा रावत, आरती, पिंकी, रेनू, तनु, सौरभ, कंचन, रोहन सैनी, राहुल, नंदकुमार, सावेज, शीतल, विधाता, रेणुका, भारती, उमा, लवकुश, मनीषा, कोमल, नीलम आदि छात्र-छात्राएं उपस्थित थे।