इंद्रेश मैखुरी….
….प्रवासी पक्षी, ऐसे पक्षी होते हैं, जो ठंड बढ़ने के साथ धरती के गर्म कोनों की तलाश में कई महासागरों और महाद्वीपों की यात्रा करते हुए गर्म इलाकों या गर्म मुल्कों में पहुँचते हैं. पक्षियों को देखने वालों यानि बर्ड वॉचर्स (bird watchers) के लिए ये खासे रुचि के विषय होते हैं.
प्राणी जगत में मनुष्य ऐसा प्राणी है, जिसमें तकरीबन कम-ज्यादा मात्रा में सभी जीव-जंतुओं के गुण या प्रवृत्तियां खोजी जा सकती हैं. प्रवासी पक्षियों की तरह के गुण वाले मनुष्य हमारे यहां राजनीतिक क्षेत्र में भी पाये जाते हैं. इनके गुण या प्रवृत्ति प्रवासी पक्षियों जैसी ही होती है !
जैसे-जैसे सत्ता की गर्मी कम होने लगती है और सत्ता से बेदखली की ठंडक बढ़ने लगती है, वैसे-वैसे ये अपने तात्कालिक राजनीतिक ठिये पर असहज़ महसूस करने लगते हैं. सत्ता से बेदखली की ठंड इनके लिए नाकाबिले बर्दाश्त होती है. सत्ता की गर्माहट इनके राजनीतिक अस्तित्व की अनिवार्य शर्त है.
ऐसे ही कुछ प्रवासी पक्षी उत्तराखंड में भी हैं. 2016 में पुराने ठिये पर सत्ता की आंच मंद पड़ती और सत्ता बेदखली की ठंड बढ़ती देख कर वे पलायन कर गए थे. अब लगता है कि मौसम में बदलाव की आहट वे महसूस कर रहे हैं. एक प्रवासी पक्षी तो पहले ही फुर्र उड़ कर वापस पुराने ठिये पर पहुँच गए हैं. वापसी के बाद उन्होंने हृदय को द्रवित करने वाला बयान दिया – मेरा शरीर भले ही वहां था पर आत्मा यहीं थी. राजा-रानी के किस्से-कहानियों के अलावा संभवतः यह सुविधा सिर्फ राजनीतिक प्राणियों को उपलब्ध है कि वे शरीर और आत्मा को अलग-अलग ठिकानों पर रख सकें !
खैर उनके तो आत्मा और शरीर का मिलन हो चुका है, लेकिन लगता है कि बाकियों की आत्माएं भी उन्हें काफी तेज पुकार रही हैं. वैसे भी प्रवासी पक्षियों के लौटने का मौसम यानि चुनाव भी आने ही वाला है.
ऐसा लगता है कि उनके वर्तमान ठिये यानि भाजपा को भी उनके फुर्र होने का अंदेशा हो चला है. बीते रोज केदारनाथ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आगमन में मोदी जी की भाव-भंगिमा से भी लग रहा था कि वे प्रवासी पंछियों की उड़ान रोकने में कोई कसर उठा नहीं रखना चाहते हैं.
हरक कई दिन से सरक-बरक कर रहे हैं, वे सरक न जाएं, इसलिए केदारनाथ में बकायदा प्रधानमंत्री वाले मंच पर वे बैठाये गए. आम तौर पर कठोर चेहरा बनाए रखने वाले प्रधानमंत्री जी, जैसे सतपाल महाराज और विजय बहुगुणा को देख कर खिलखिला रहे थे, उन्हें पुचकार रहे थे, उसे देख कर महसूस हो रहा था कि यह अतिरिक्त तवज्जो इसीलिए है ताकि क्या पता इस मुस्कान के भाव से ही प्रवासी पक्षियों की सत्ता फ्लाइट कुछ विलंबित हो सके ! यह खिलखिलाहट आत्मीयता की कम और विवशता की अधिक थी ! हमारे यहां कहावत है- बड़े दुख की बड़ी हंसी ! प्रवासी पक्षियों का झुंड यदि अनुकूल मौसम की तलाश में फुर्र होना चाहता है तो यह स्पष्ट संकेत तो है ही ! जिनका उठना-बैठना, हंसना-बोलना, ओढ़ना और पहनना सब कुछ सत्ता की खातिर है, उनके लिए प्रवासी पक्षियों के उड़ने की आहट से निकलने वाले संकेत से पीड़ादायी संकेत और क्या होगा !
हे सत्ता के महाउपासक,महानुष्ठानक, प्रवासी पक्षी गर्म मौसम वाले इलाकों की ओर उड़ान भरते हैं और राजनीति के प्रवासी पक्षी भी ठंड बर्दाश्त नहीं कर पाते, वे खिलखिलाने-पुचकारने में नहीं आते ! सत्ता की गर्मी ही उनकी जीवन रेखा है, उनका उड़ना मतलब सत्ता का उड़न छू होना !
(लेखक भाकपा मामले के गढवाल सचिव हैं)