उत्तराखंड परिसंपत्ति निबटारा-झूठ का पुलिंदा

डॉ योगेश धस्माना की कलम से…

…उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्रियों द्वारा गत वर्ष बद्रीनाथ में एक साझा प्रेस कांफ्रेंस कर कहा गया था,  कि उन्होंने दोनों राज्यों के बीच परिसंपत्ति विवाद को सुलझा लिया है। यदि इस कथन में सच्चाई है तो वर्तमान मुख्यमंत्री धामी और कौन सा सच उगल रहे हैं, कि उन्होंने 21 वर्षों से चले आ रहे विवादों को निपटाने का दंभ भरा है।

मैंने तब भी और अब भी यह कहा है कि त्रिवेंद्र-योगी और फिर धामी इस विषय पर झूठ बोलकर जनता को गुमराह कर रहे हैं।  विगत 7 वर्षों में जब केंद्र और राज्य में डबल इंजन की सरकार है। दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री उत्तराखंड से ही आते हैं।  इस स्थिति के बाद भी अगर दोनों राज्यों के बीच परिसंपत्तियों का विवाद यदि वास्तविक रूप से निपट चुका है, तो सरकार इस पर श्वेत पत्र जारी क्यों नहीं करती है।

एक अन्य उदाहरण पहाड़ की जनता के साथ साझा कर रहा हूं कि, हरिद्वार स्थित अलकनंदा होटल जो अब जर्जर हो चुका है,  उसे तोड़कर नया बनाया जाना है। निबटारे में उसे उत्तराखंड को देकर राष्ट्रीय राजमार्ग से सटे अरबों रुपए की जमीन  उत्तर प्रदेश को निशुल्क को दे दी गई। आखिर यह कैसा विवाद का हल है।

हरिद्वार का वीआईपी घाट, उत्तराखंड से उत्तर प्रदेश के लिए कर्मचारियों का हस्तांतरण, नानकमत्ता  सागर में मछली पालन के पट्टे अभी उत्तर प्रदेश के सिंचाई विभाग में ही बने हुए हैं।  कोटद्वार,  बिजनौर सीमा के निकट, उत्तर प्रदेश सीमा पर लगभग 15 गांव जहां पहाड़ी प्रवासी बन कर के लोग रहे हैं,  उस जनता को उत्तराखंड में निरंतर मिलाने की मांग की जा रही है।

यह वही क्षेत्र है जहां वीर चंद्र सिंह गढ़वाली को भी उत्तर प्रदेश की सरकार ने लीज पर जमीन दी थी।  इसके अंतर्गत ही उत्तर प्रदेश, भाजपा सरकार द्वारा योगी से भी इन गांवों को उत्तराखंड में मिलाने की मांग निरंतर की जा रही है। क्यों  डबल इंजन की सरकार इस तरह आंखें मूंदे बैठी हुई है ? स्वयं क्षेत्र के विधायक और मंत्री हरक सिंह रावत निरंतर इस गांव को उत्तराखंड राज्य में मिलाने की मांग करते रहे हैं। आखिर डबल इंजन की सरकार उत्तराखंड के लोगों से झूठ बोलकर जो छल कर रही है,  क्या उसे नहीं लगता कि आखिरकार उसे जनता के सामने ही जाना होगा और फिर जनता उसे सबक सिखाने के लिए तैयार रहेगी। उत्तराखंड में गोदी मीडिया के पत्रकार इस बात को समझ ले, की योगी उत्तर प्रदेश की राजनीति उउत्तराखंड के संदर्भ में नहीं कर रहे हैं। यदि योगी को उत्तर प्रदेश में अपनी अपनी जड़ें जमानी है, तो परिसंपत्ति का विवाद बनाए रखना ही उनकी कुर्सी को भी सुनिश्चित कर सकेगा।

 

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