क्यों विशिष्ट है बैकुण्ठ चतुर्दशी का पर्व जानिये पर्व की तिथि, महत्व और पूजा विधि

गौचर (प्रदीप लखेड़ा ): बैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन भगवान शिव सृष्टि का भार चार महीने बाद पुन: भगवान विष्णु को सौंप देते हैं। मान्यता है कि इस दिन वैकुण्ठ लोक के द्वार भी खुले रहते है। बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु की पूजा का विधान है

हर वर्ष कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को  बैकुंठ चतुर्दशी मनाई जाती है। इस साल 17 नवंबर को बैकुंठ चतुर्दशी का त्योहार मनाया जाएगा। इस दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। देश के विभिन्न हिस्सों में इस दिन बड़े पैमाने पर पूजा का आयोजन किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन महादेव और श्रीहरि विष्णु की उपासना करने से मनुष्य के सभी पाप कट जाते हैं। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार जिन चार महीने के लिए भगवान शयन निद्रा में चले जाते हैं, उस दौरान सृष्टि की संचालन भगवान शिव करते हैं।

चार महीने सोने के बाद देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु जागते हैं। जिसके बाद वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन भगवान शिव सृष्टि का भार पुन: भगवान विष्णु को सौंप देते हैं। मान्यता है कि इस दिन वैकुण्ठ लोक के द्वार भी खुले रहते हैं। साथ ही कहा जाता है कि जो भी मनुष्य वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन पूरे विधि-विधान से पूजा और व्रत करता है, वह मृत्यु के बाद भगवान विष्णु के पास वैकुण्ठ धाम चला जाता है।

चतुर्दशी तिथि 17 नवंबर, बुधवार के दिन प्रातः 9 बजकर 50 मिनट से शुरू हो जाएगी और 18 नवंबर, गुरुवार के दिन दोपहर 12 बजे चतुर्दशी तिथि समाप्त होगी।

क्या है पूजा विधि…

बैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन सुबह उठकर स्नानादि से निवृत होकर व्रत का संकल्प लें। फिर रात में भगवान विष्णु की 108 कमल के फूलों से पूजा करें। इसके बाद भगवान शिव की पूजा करें। पूजा के दौरान ‘विना हो हरिपूजां तु कुर्याद् रुद्रस्य चार्चनम्। वृथा तस्य भवेत्पूजा सत्यमेतद्वचो मम।।’ मंत्र का जाप करें। इस दिन भगवान शंकर को भी मखाने से बनी खीर का ही भोग लगाना चाहिए।

मान्यता के अनुसार क्या है पर्व का इतिहास

 पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार भगवान विष्णु ने काशी में भगवान शिव को एक हजार स्वर्ण कमल के पुष्प यानी फूल चढ़ाने का संकल्प किया। भगवान शिव ने विष्णु जी की परीक्षा लेने के लिए सभी में से एक स्वर्ण पुष्प कम कर दिया। पुष्प कम होने पर विष्णु जी अपनी ‘कमल नयन’ आंख को समर्पित करने लगे। तभी भगवान शिव उनकी यह भक्ति देखकर बहुत प्रसन्न हुए तथा प्रकट होकर कहा कि कार्तिक मास की इस शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी ‘बैकुण्ठ चौदस’ के नाम से जानी जाएगी। इस दिन व्रत पूर्वक जो पहले आपका पूजन करेगा, उसे वैकुण्ठ लोक की प्राप्ति होगी। माना ये भी जाता है कि इसी दिन महाभारत के युद्ध के बाद, उसमें मारे गए लोगों का भगवान श्री कृष्ण ने श्राद्ध करवाया था। इसलिए इस दिन श्राद्ध तर्पण कार्य करने का भी विशेष महत्व होता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!